शिमला-29 मार्च (rhnn) : चैत्र नवरात्रि अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके हैं और आज मां दुर्गा की आठवीं शक्ति महागौरी की पूजा की जाएगी। नवरात्रि के आठवें दिन की पूजा का विशेष महत्व है, इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। माता के कुछ भक्त जो पूरे 9 दिन व्रत नहीं रख पाते, वे प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को व्रत रखते हैं। देवीभगवत् पुराण में बताया गया है कि आठवें दिन की पूजा मां दुर्गा के मूल भाव को दर्शाता है और महादेव के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में महागौरी ही सदैव विराजमान रहती हैं, इसलिए माता का एक नाम शिवा भी है। महागौरी की पूजा करने से सोमचक्र जागृत हो जाता है और इनकी कृपा मात्र से हर असंभव कार्य पूरा हो जाता है।देवीभागवत पुराण में बताया गया है कि देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के यहां हुआ था। माता को मात्र 8 वर्ष की आयु में ही अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया था। मात्र 8 वर्ष की आयु में ही माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या भी शुरू कर दी थी। इसलिए नवरात्रि की अष्टमी तिथि को महागौरी की पूजा की जाती है। अपनी तपस्या के दौरान माता ने केवल वायु पीकर तप करना शुरू कर दिया था। तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था इसलिए माता पार्वती का नाम महागौरी पड़ा।तपस्या से माता पार्वती का शरीर काला पड़ गया था। तब भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर महागौरी से गंगा स्नान के लिए कहा। जिस समय माता पार्वती ने गंगा में डूबकी लगाई तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी के नाम से जानी गईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, वह महागौरी कहलाईं। महागौरी अपने भक्तों की हर मुरादों को पूरा करती हैं और उनकी राह में आ रही अड़चनों को दूर करती हैं। मां की कृपा से कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती।अष्टमी पर कन्या पूजन का भी विधान है। हालांकि कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। लेकिन, अष्ठमी के दिन कन्या पूजन करना भी श्रेष्ठ रहता है। कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति उत्तम है अन्यथा दो कन्याओं के साथ भी पूजा की जा सकती है। कन्याओं के साथ एक लांगूरा (बटुक भैरव) भी होना चाहिए। कन्याओं को घर पर बुलाकर उनके पैरों को धुलकर कुमकुम का टिका लगाएं और फिर पूजन में कन्याओं को हलवा-चना, सब्जी, पूड़ी आदि चीजें होनी चाहिए और सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा भी दें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ चरण स्पर्श करें और माता के जयाकरे लगाते हुए कन्याओं को विदा करें।
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