कुल्लू/शिमला-15 अक्टूबर (rhnn) : अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दूसरे दिन नरसिंह भगवान की पहली जलेब यात्रा निकली। यह यात्रा आकर्षण का केंद्र बनी। जलेब यात्रा में महाराजा कोठी के सात देवताओं के साथ-साथ हारियानों ने भाग लिया। ढोल-नगाड़ों की थाप पर हुई परिक्रमा में खास यह रहा कि देवी-देवताओं संग देवलू भी जमकर नाचे। भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह भी पालकी में सवार हुए। हर जलेब यात्रा में अलग-अलग देवी-देवता भाग लेते हैं। सोमवार को अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दूसरे दिन निकली नरसिंह भगवान की पहली जलेब यात्रा में महाराजा कोठी के पीज के देवता जमलू, देवता अजय पाल पीज, हुरगू नारायण जोंगा, कैलावीर कमांद, पांचवीर खलियाणी, वीर कैला गढ़पति लोट, महावीर जोंगा आदि देवताओं ने भाग लिया।
ढोल-नगाड़ों की थाप पर महाराजा कोठी के देवताओं के साथ-साथ कारकून और अन्य श्रद्धालु भी खूब नाचे। करीब साढ़े चार बजे निकाली गई जलेब राजा की चानणी से शुरू हुई। पालकी के दोनों ओर देवताओं के रथ चले, तो आगे-आगे देवताओं के नरसिंह भगवान की घोड़ी और वाद्य यंत्र की धुनें गूंजती रहीं। चानणी, कालेज चौक, कलाकेंद्र के पीछे से रथ मैदन होते हुए जलेब अंतत:राजा की चानणी के पास ही संपन्न हुई।
जनश्रुति के अनुसार राजा की रियासत के समय सुरक्षा की दृष्टि से यह जलेब निकाली जाती थी। देवताओं के जलेब में जाने का अभिप्राय: आसुरी शक्तियों का आक्रमण दशहरा में सम्मिलित देव समाज पर न हो। दशहरा पर्व में पुरातन समय में कुल्लू के राजाओं की जो भूमिका थी, वह आज भी है और अब उनके वंशज उसी तरह से पुरातन रीति-रिवाजों को परंपरागत ढंग से निभा रहे हैं।
जलेब यात्रा शुरू होने से पहले मंगलवार को महाराजा कोठी के देवी-देवता एक साथ चानणी के पास एकत्रित हुए। यात्रा शुरू होने से पहले देवताओं ने भव्य देव मिलन किया। इसके बाद जलेब यात्रा में शामिल हुए। बीच में नरसिंह भगवान और उनके दाएं-बाएं महाराजा कोठी के देवी-देवता विराजमान रहे।
अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दूसरे दिन ढालपुर मैदान में अंतरराष्ट्रीय कल्चरल परेड का आयोजन किया गया। इसमें 17 देश के कलाकारों ने अपनी.अपने देश की संस्कृति का प्रदर्शन किया। इसके अलावा भारत के विभिन्न राज्यों से आए कलाकार भी परेड में शामिल रहे। इस कल्चरल परेड को प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने हरि झंडी दिखाकर रवाना किया। मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि इस परेड के माध्यम से सभी देशों की संस्कृति का आदान-प्रदान होगा।