शिमला-15 अक्टूबर (rhnn) : शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा मां के नौ रूपों को की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है पर्वत की बेटी। पौराणिक कथा के अनुसार माँ शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में भगवान शिव की अर्धांगिनी और दक्ष की पुत्री थीं। मां शैलपुत्री के माथे पर अर्ध चंद्र, दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है, नंदी बैल इनकी सवारी है।
मां शैलपुत्री का मंत्र, ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
स्तुति: या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें। मंदिर की साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़क कर इसे शुद्ध कर लें। इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें. मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें। इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश में चारों ओर आम या अशोक के पत्ते लगाएं और इसमें साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें। एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखें। घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान किया जाता है।
नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना शुभ मुहूर्त में ही करें। मिट्टी के पात्र में खेत की स्वच्छ मिट्टी डालकर उसमें 7 प्रकार के अनाज बोएं। ईशान कोण में पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उसपर कलश स्थापित करें। कलश में सिक्का, गंगाजल, सुपारी, अक्षत, दूर्वा डालकर उसपर आम के पत्ते लगाएं और जटा वाला नारियल रख दें। नारियल पर मौली बांधे। जौ वाला पात्र चौकी पर रखें, अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें। अब गणपति, समस्त ग्रहों और मां दुर्गा का आव्हान करें।