शिमला 16 नवम्बर (rhnn) : हिमाचल प्रदेश में राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड का गठन असंगठित क्षेत्र के निर्माण मज़दूरों की सहायता के लिए वर्ष 2008 में हुआ था। जिसमें साढ़े चार लाख मज़दूर पंजीकृत हुए हैं और उन्हें हर साल करोड़ो रूपये की सहायता प्रदान की जाती है। लेकिन जब से हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार सुखू के नेतृत्व में बनी है तब से ये सहयता रोक दी गई है और अब आलम ये है कि इस वित्त वर्ष में मात्र 21 लाख रुपये की सहायता ही प्रदान की गई है जबकि पिछले साल ये सहायता राशी 160 करोड़ रुपये जारी हुई थी। जिसके चलते सबसे ज्यादा सहायता मज़दूरों के बच्चों की पढ़ाई के लिए 58 करोड़ रुपये विवाह शादी के लिए 95 करोड़ मैडिकल सहायता के लिए 90 लाख रुपये प्रसूति प्रसुविधा के लिए 2.4 करोड़ रुपये तथा मृत्य और दाह संस्कार के लिए 5 करोड़ और पेंशन के लिए 20 लाख रुपये जारी हुए थे। लेकिन तथाकथित व्यवस्था परिवर्तन वाली सुखू सरकार ने ये सब रोक दिया गया। इस सरकार के समय पिछले 11 महीनों में मात्र 21 लाख रुपये की सहायता जारी की गई। इससे से साफ़ पता चलता है कि सुखू सरकार ने लाखों मज़दूरों के बच्चों की पढ़ाई विवाह शादी व अन्य सुविधाएं रोक कर बहुत ही जनविरोधी क़दम उठाया है। जबकि अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन भतों, बैठकों, प्रचार प्रसार व कार्यलयों के किराये पर 2 करोड़ 75 लाख रुपये खर्च किये हैं हैं जो क़ानून की सरेआम उलंघन्ना है। 1996 में बने बीओसीडब्ल्यू क़ानून में प्रशानिक ख़र्च के लिए कुल ख़र्च का पांच प्रतिशत भाग ही ख़र्च हो सकता है, लेकिन सुखू सरकार ने आज तक के सारे रिकार्ड तोड़ डाले हैं जिसने मज़दूरों के कल्याण व सहायता राशी जारी करने पर तो रोक लगा दी है और कर्मचारियों व अधिकारियों के ऊपर ही ख़र्च किया जा रहा है। सीटू के राज्य अध्यक्ष विजेंदर मेहरा और निर्माण व मनरेगा यूनियन के राज्य महासचिव भूपेंद्र सिंह ने बताया कि यूनियन सरकार के इस फ़ैसले का पिछले आठ महीने से निरंतर विरोध कर रही है लेक़िन सुनवाई न होने के कारण अब फ़िर से 25 नवंबर को शिमला में सचिवालय का घेराव करने जा रही है जिसमें पूरे प्रदेश से हज़ारों मज़दूर हिस्सा लेंगे।
यूनियन के राज्य महासचिव व श्रमिक बोर्ड के सदस्य भूपेंद्र सिंह ने बताया कि सुखू सरकार प्रदेश के लाखों मज़दूरों की सहायता छीनने वाली सरकार बन गई है। मज़दूरों को इस सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी कियूंकि इन्हीं मज़दूरों ने पिछले साल भाजपा को हराया था और इस सरकार को सत्ता में बैठाया था जिसने सबसे पहले मज़दूरों के हक़ छीनने का काम किया जिसका परिणाम उन्हें मई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ेगा।भूपेंद्र सिंह ने बताया कि सरकार ने न केवल सहायता रोकी है बल्कि मज़दूरों का बोर्ड में पंजीकरण भी लगभग बन्द कर दिया है और इस साल मात्र 1686 मज़दूरों का ही पंजीकरण हुआ है जबकि पिछले साल 70 हज़ार से ज़्यादा मज़दूरों का पंजीकरण हुआ था।यही स्थिति नवीनीकरण की है और इस साल मात्र 1194 मज़दूरों का ही नवीनीकरण हुआ है।इसके अलावा सभी प्रकार की सहायता लेने वाले आवेदन फार्म भरने पर भी रोक लगा रखी है और 1लाख 25 हज़ार मज़दूरों के क्लेम बोर्ड कार्यालय में स्वीकृति के लिए लंबित पड़े हैं। बोर्ड के पास बजट की कोई कमी नहीं है कियूंकि सेस एक्ट के तहत बोर्ड को अलग से प्राप्ति होती है और बोर्ड को राज्य सरकार कोई बजट उपलब्ध नहीं करवाती है फ़िर भी उसने ये मज़दूर विरोधी फ़ैसला लेकर लाखों मज़दूरों की सहायता छीनी है।इसलिये अब सीटू से जुड़ी यूनियन व अन्य यूनियनें मिलकर इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर करने जा रही हैं जिसके लिए शिमला में प्रदर्शन करने के बाद तिथि तय की जायेगी।