शिमला-19 नवंबर (rhnn) : 24 अक्टूबर 2024 को करीब 2:00 बजे तक अश्वनी भाई और अभिषेक भाई ने पूरे सफर की लिए दिनचर्या का सामान (Ready-to-eat-food, चावल, नूडल्स, नमकीन, चीनी, चाय, दूध आदि) एकत्र कर लिया फिर, इन दोनों साथियों ने टेंट और स्लीपिंग बैग का इंतजाम किया और करीब दो बजे हम अश्वनी भाई की गाड़ी Fortuner HP-07E-2626 में अपना सफर कसुम्पटी (शिमला) से शुरू किया। BCS में हमने गाड़ी रोकी और सारे सामान की adjustment की, क्योँकि यहाँ से जुगल भाई ने गाड़ी में दो कट्टे लकड़ी के डाले, जिसके लिए जुगल भाई का धन्यवाद करना बेहद ज़रूरी है। प्रवीण भाई हमारा इंतज़ार बालूगंज (शिमला) में कर रहे थे ।
करीब 250 किलोमीटर का सफर तय करके हम शाम 7:30 बजे के करीब हम मनाली पहुंचे, यहां प्रवीण भाई के मित्र साहिल ने हमारे डिनर और रहने का इंतजाम कर रखा था। साहिल, शेर-ए-पंजाब मनाली में कार्यरत है। लाजवाब डिनर करने के बाद हम अपने रूम की तरफ चल दिए, सफर की थकान के बावजूद सोने के लिए हमने 12:00 बजे तक का इंतजार किया, क्योंकि अभिषेक भाई को 27वा जन्मदिन विश करना था, जिसके लिए जुगल भाई ने एक cup_cake का इंतज़ाम भी किया हुआ था ।
25 अक्टूबर 2024 को सुबह 6:00 बजे हमने अपने अगले पड़ाव की ओर यात्रा शुरू कर दी। मनाली के बाद सोलंग_नाला (solangnala) होते हुए अटल_टनल तक का रास्ता प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर रहा। आधुनिक सुविधा से लैस 9 किलोमीटर की अटल टनल, जिसे पार करने में स्पीड के अनुसार अश्वनी भाई ने तकरीबन 10 मिनट लागए। अटल टनल के अंदर गाड़ियों के लिए 40/50/60 की स्पीड लिमिट है। अटल टनल पार करते ही शीत मरुस्थल (cold desert) की सुंदर वादियों के दर्शन होने लगते हैं। थोड़ी दूरी में लाहुल का पहला गांव सिरसु आता है, यहां घेपन ऋषि का प्राचीन मंदिर है ।
करीबन 40 किलोमीटर के सफर के बाद तांदी में हम चाय पीने के लिए रुक गए। गाड़ी से उतरते ही शीत लहर ने हमें जैसे छुआ हमारे रोंगटे खड़े हो गए। प्रवीण भाई ने बताया कि तांदी चंद्रा_भागा नदियों का संगम स्थल है। ऐतिहासिक आलेख कहते हैं कि इस स्थान का स्थापना चांदी के नाम से राजा चांद राम ने की थी, कालांतर में यही नाम विकृत होकर तांदी बन गया। इस संगम स्थल के इतिहास पर नजर डालें तो चंद्रभागा ने कई युग देखे हैं। बौद्ध धर्म के लोग इस पानी को स्वर्ग से आया हुआ मानते हैं। बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ “विमान बत्थू” में इस नदी को तंगति कहा गया है। अरबी और फारसी में मुगलों ने इस नदी का नाम “चिनाव” दिया जिसका अर्थ होता है “आब-ए-चीन” यानी चीन से आने वाला पानी।
एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रमा की बेटी ‘चंद्रा’ और सूर्य का बेटा ‘भागा’ दो प्रेमी थे। अपनी सनातन शादी को मनाने के लिए उन्होंने “बारालाचा-ला” पर चढ़ने का निर्णय किया और वहां से वे विपरीत दिशाओं में भागे। चंद्रा ने दर्रे के नीचे 115 किलोमीटर का सफर तय किया और तांदी पहुंच गई। भागा ने भी तंग खड्डों का संघर्ष करते हुए लगभग 60 किलोमीटर का रास्ता तय किया और तांदी पहुंच गया, जहां अंततः दोनों मिले और दिव्य विवाह संपन्न हुआ। लाहुल के लोगों के लिए तांदी का महत्त्व वैसा ही है, जैसा हिंदुओं के लिए हरिद्वार। एक अन्य विश्वास के अनुसार महाभारत की द्रौपदी का दाह संस्कार यहां किया गया था। इस स्थान को तनदेही भी कहा जाता है, वह स्थान, जहां व्यक्ति अपना शरीर त्याग करता है।
वर्तमान में नदी को लाहौल स्पीति में चंद्रभागा वे आगे चिनाब के नाम से जाना जाता है। यह नदी पश्चिमी हिमालय के कई देशों को सींचती है, जिसमें तिब्बत, भारत और पाकिस्तान शामिल है। यह सिंधु नदी का एक सहायक नदी है। चंद्रा नदी स्पीति की तरफ से आती है जबकि भागा नदी लाहौल घाटी से आती है। दोनों ही नदियों का उद्गम स्थल “बारालाचा-ला” दर्रा है। चंद्रा नदी स्पीति घाटी को और भागा लाहौल घाटी को सींचती है।
इस जगह कबीर जी का एक दोहा याद आ गया :
मोको कहाँ ढूँढ़े रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना देवल में ना मस्जिद में, ना काबे-कैलास में॥
खोजि होय तो तुरंत मिलि हौं, पल भर की तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसन की साँस में॥
कमल जीत डोगरा “कोटगढ़िया”