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पेंशनरों में गुस्सा, सरकार को 20 सितंबर तक अल्टीमेटम

शिमला 17 अगस्त 2025 (RHNN) : स्वतंत्रता दिवस पर मुख्यमंत्री की ओर से कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए महंगाई भत्ते (डीए) की किस्त अथवा लंबित संशोधित वित्तीय लाभों की घोषणा न होने से पेंशनरों और कर्मचारियों में गहरा रोष पनप गया है। इस पर पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश ने कड़े शब्दों में सरकार की निंदा करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश ठाकुर और महासचिव भूप राम वर्मा ने संयुक्त बयान में कहा कि यदि सरकार ने 20 सितंबर तक पेंशनरों की देनदारियां चुकाने और 13% महंगाई भत्ते की घोषणा नहीं की, तो प्रदेशभर में पेंशनर उग्र प्रदर्शन करेंगे और “हल्ला बोल” आंदोलन छेड़ेंगे। सुरेश ठाकुर, जो हिमाचल प्रदेश पेंशनर्स संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष भी हैं, ने बताया कि संघर्ष समिति से जुड़े 15 संगठनों की बैठक अगले 10 दिनों में बुलाई जाएगी। इसकी तैयारी महासचिव इंदर पाल शर्मा कर रहे हैं।

पेंशनर्स नेताओं ने कहा कि मौजूदा सरकार पूरी तरह पेंशनर विरोधी है। 1 जनवरी 2016 से 31 जनवरी 2022 के बीच सेवानिवृत्त कर्मचारियों को 60% संशोधित वित्तीय लाभ जैसे ग्रेच्युटी, लीव एनकैशमेंट और कम्यूटेशन का भुगतान नहीं किया गया है। इसके अलावा, 110 महीने का लंबित डीए और 13% महंगाई भत्ता भी अटका हुआ है। पेंशनर्स के करोड़ों रुपये के चिकित्सा बिल भी पिछले दो वर्षों से विभागों में लंबित हैं। कई सेवानिवृत्त कर्मचारियों का निधन हो चुका है, लेकिन उन्हें जीवनकाल में न तो इलाज का पैसा मिला और न ही बकाया लाभ। एसोसिएशन ने इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। सुरेश ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री पर विश्वास करना मुश्किल है। उन्होंने 15 अप्रैल, 2025 को देहरा में 3% डीए देने का ऐलान किया था, लेकिन आज तक इसे लागू नहीं किया गया।

पेंशनर्स नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार एक ओर विधायकों का मासिक वेतनमान बढ़ाकर ₹2,10,000 से ₹2,90,000 कर रही है और अपने करीबियों को बोर्डों व निगमों में चेयरमैन-वाईस चेयरमैन बना रही है। महंगी गाड़ियां खरीदी जा रही हैं, जिससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ रहा है। वहीं, पेंशनरों और कर्मचारियों के हक़ का पैसा देने में आनाकानी की जा रही है। संयुक्त संघर्ष समिति ने संकेत दिए हैं कि 20 से 30 सितंबर के बीच किसी भी दिन प्रदेशभर में आंदोलन शुरू किया जा सकता है। इसमें शिमला में बड़ी रैली आयोजित करने, सचिवालय व विधानसभा घेराव तक की रणनीति बन सकती है।

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